ओ भाई !
दिखा तुम्हें क्या गाँव हमारा
इसी शहर में खोया।
यही गाँव था, जिसको घेरे
हरी-भरी अमराई थी
पश्चिम में कुछ ताल तलैया
पूरब में फुलवाई थी
पुरखों ने
द्वारे की निमिया के नीचे
नींद चैन की सोया।
इसी गाँव के बीच बंधुवर
गोबर लिपी रही अँगनाई
साँझ सबेरे गैया दुहती
अम्मा कभी, कभी भौजाई
और इसे
सावन-भादों के बादल ने
कितनी बार भिगोया।
घर में मंदिर, मंदिर में घर,
संध्या, भजन आरती थे
आपस में पलता प्यार सलोना
सब विश्वास व्रती थे
ओ भाई !
खोज-खोज कर हार गया जब
मैं रात-दिवस रोया।